एक हिंदी शिक्षक के रूप में मैं यह अनुभव करती हूँ कि हिंदी अब केवल भारत की भाषा नहीं रही, बल्कि यह धीरे-धीरे विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। भाषा किसी समाज की आत्मा होती है, और जब वह सीमाओं से बाहर निकलकर दूसरी संस्कृतियों और समाजों में स्वीकार की जाने लगे, तभी वह विश्व भाषा का रूप लेती है। हिंदी आज विश्व की बड़ी भाषाओं में गिनी जाती है। विश्व के लगभग 60 देशों में हिंदी बोली, समझी और पढ़ाई जाती है। प्रवासी भारतीय समुदाय ने इसे विदेशों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका और गुयाना जैसे देशों में तो हिंदी जीवन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, जापान और चीन में भी विश्वविद्यालयों और भाषा संस्थानों में हिंदी का शिक्षण हो रहा है।
एक शिक्षक के रूप में मुझे यह देखकर खुशी होती है कि हिंदी शिक्षण अब पारंपरिक पुस्तकों तक सीमित नहीं है। डिजिटल युग ने इसे नए आयाम दिए हैं। ऑनलाइन क्लासरूम, यूट्यूब चैनल, भाषा सीखने वाले मोबाइल ऐप्स और वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स ने हिंदी शिक्षा को वैश्विक स्तर पर सरल और आकर्षक बना दिया है। अब कोई भी व्यक्ति किसी भी देश में बैठकर हिंदी सीख सकता है। हिंदी केवल भाषा ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का वाहक भी है। बॉलीवुड फिल्मों, गीतों, टीवी धारावाहिकों, योग और आयुर्वेद के माध्यम से हिंदी को वैश्विक पहचान मिली है। जब विदेशी छात्र हिंदी सीखते हैं, तो वे केवल शब्द नहीं सीखते, बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवन-दर्शन को भी समझते हैं। यही कारण है कि उनकी हिंदी सीखने की रुचि और गहरी होती जाती है।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि हिंदी के पास विश्व भाषा बनने की पूरी क्षमता है। इसकी सरलता, मधुरता और लचीलेपन ने इसे लोकप्रिय बनाया है। यदि हम हिंदी को विज्ञान, तकनीक, व्यापार और अंतरराष्ट्रीय संवाद में और अधिक प्रयोग में लाएँ, तो इसका भविष्य और भी उज्ज्वल होगा। एक हिंदी शिक्षक के रूप में मैं यह मानती हूँ कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय पहचान और संस्कृति का प्रतीक है। इसके शिक्षण और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देकर हम इसे वास्तविक अर्थों में विश्व भाषा बना सकते हैं। वह दिन दूर नहीं जब हिंदी गर्व से विश्व मंच पर खड़ी होगी और हर भारतीय हृदय को गौरव की अनुभूति कराएगी।