हिंदी को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जन-जन में लोकप्रिय बनाने में वर्तमान दौर के हिंदी में लाइब्रेरी संस्करण किताबें लिखने वाले लेखकों और सरकारी प्रयासों का कोई योगदान नहीं है। इन्होंने हिंदी दिवस अभियान का केवल निजी लाभ उठाया है। हिंदी देश को एक सूत्र में जोड़ने वाली भाषा तब बनी- जब देवकीनंदन खत्री, भारतेंदु हरिश्चंद्र और प्रेमचंद की पीढ़ी के साहित्यकारों, लेखकों, स्वतंत्रता सेनानी संपादकों/पत्रकारों ने अंग्रेजी और अंग्रेजों के खिलाफ अपनी भाषा को एक हथियार बनाया। ‘दो में से तुम्हें क्या चाहिए कलम या कि तलवार’ या फिर ‘जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’- जैसी रचनाएं केवल आजादी का तराना नहीं थीं- इनमें हिंदी भाषा के उन्नयन का जोश था।
सच, आजादी के बाद हमने हिंदी को साइडलाइन कर दिया। हालांकि तब भी अंग्रेजी के प्रोफेसर्स-विद्वान हिंदी में ही रचनाएं लिखते रहे और जमीनी लोकप्रियता भी पाते रहे। दरअसल एक धारणा बन गई कि हिंदी का प्रचार-प्रसार केवल हिंदी के लेखकों का काम है या सरकारी योजनाओं का काम है। यकीन मानिये इस धारणा ने देश में हिंदी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया। लेकिन बाद के दौर में जब हम इस धारणा से मुक्त हुए तो हिंदी पहले से ज्यादा सशक्त हुई। हिंदी की पहुंच राष्ट्रीय और ग्लोबल हुई। मसलन जब हिंदी सिनेमा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हुआ तो हिंदी भी सात समंदर पार पहुंची। हिंदी के गाने वे भी खूब गाते और सुनते हैं, जो ठीक से हिंदी बोल नहीं सकते या हिंदी लिख-पढ़ नहीं सकते। जब एफएम रेडियो और निजी मनोरंजन चैनल आए तो हिंदी ने नई पोषाक पहनीं। महानगरों के कथित संभ्रांत लोगों में हिंदी की इज्जत बढ़ी। जब 24X7 लाइव हिंदी के न्यूज चैनलों का प्रसारण शुरू हुआ तब देश के कोने कोने से हिंदी बोलने-सुनने वालों की तादाद बढ़ी। फिक्की, एसोचेम की बैठकें हों या इफ्फी जैसे अंतरराष्ट्रीय समारोह- यहाँ से सीधी हिंदी में रिपोर्टिंग होने लगी और वे दिग्गज विशेषज्ञ जो पहले केवल अंग्रेजी ही बोलते थे, वे भी हिंदी में बाइट और इंटरव्यू देने लगे। जब बहुष्ट्रीय कंपनियों के नीतिकारों ने गाँव-गाँव और झुग्गियों तक पहुँच बनाकर अपने उत्पाद बेचने के लिए विज्ञापन की भाषा में हिंदी को अपनाया, जब टीवी सीरियलों और खासतौर पर अमिताभ बच्चन का केबीसी शो प्रसारित हुआ तो हिंदी भाषा लोकप्रियता के चरम पर पहुँची। केबीसी की हिंदी ने हीनताबोध से ऊपर उठाया। अमिताभ बच्चन का लहजा- ‘प्रणाम करता हूँ मैं आपको’ या फिर ‘बहुत बहुत स्वागत है आपका’ ‘कंप्यूटर जी’ या ‘कंप्यूटर महाशय’ की तरह ही लोकप्रिय हुआ। हिंदी का आकर्षण बढ़ा। और जब सोशल मीडिया आया तो हिंदी का तो विस्फोट ही हो गया। हमने आज तक एक भी रील अंग्रेजी में नहीं देखी, जिसे आम लोगों ने बनाई हो। केवल हिंदी या अन्य भारतीय भाषा में ही देखा है।
सच, हिंदी जितनी रूढ़ियों से मुक्त होगी, जितनी दकियानूस व्याकरण से रहित होगी, हिंदी में जितनी अन्य भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल करेंगे- बाजार, दफ्तर की सहज भाषा बनाएंगे और अंग्रेजी को केवल संपर्क भाषा के तौर पर ही रहने देंगे तो हिंदी भी गोरों की भाषा की तरह एक दिन दुनिया में राज करेगी। अंग्रेजों ने अंग्रेजी को केवल साहित्य तक सीमित नहीं रखा, उसे शासन और बाजार की भाषा बनाया था।
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