खुशी के कुछ पल आकर के
महका देते है घर को वो।
फिर वो ही सुंदर पल हमें
अंधेरो में फिर ले जाते है।
सफर मेरी जिंदगी का
इसी तरह से निकला है।
कभी खुशियाँ रही तो
कभी गमों ने घेरा है।।
बहुत मेहसूस किया हमने
खुदको अंदर से समझने में।
गहन अध्ययन किया हमने
स्वयं को सामने रखकर।
परंतु परिणाम मिले नहीं
कभी मुझे अपने अनुसार।
इसका दोष हम किसको
और किस के लिए दे।।
कर्ता धर्ता स्वयं रहा हूँ
तो दोषी भी स्वयं रहूँगा।
जीवन के हर पल को
अपने अनुसार ही जियूँगा।
देख चुका हूँ अपनो को
क्या क्या दिया उन्होंने।
इसलिए उन सब पर से
अब विश्वास उठ गया है।।