सिखाया जिसने जीना मुझको
वही छोड़कर चली गई।
जलाये जिसने अंधेरो में दीपक
वो न जाने कहाँ खो गई।
सिखाया जिसने लिखना पढ़ना
पता नहीं वो क्यों रूठ गई।
सच कहे की हमारा आधार
अब जिंदगी का नहीं बचा।।
हमें अकेला छोड़ गई
क्यों जीवन देने वाली।
बिना तेरे जीना मुझे
अब आता नहीं।
पग पग पर पड़ती है
आज भी तेरी जरूरत।
कैसे अकेला चल पाऊंगा
इस मतलबी दुनियां में।।
कितना मुझे संभलाती थी
इस भीड़ भरी दुनियां में।
अपना स्नेह प्यार लूटती थी
मुझे जिंदा रहने के लिए।
भूलकर भी कोई बुरा भला
मुझे कह नहीं सकती थी।
ऐसी ढाल तुम बनकर
समाने खड़ी हो जाती थी।।