बैठे बैठे बाग में
देखा कुछ ऐसा।
जैसे सूरज की किरणे
धीरे धीरे फैलती है।
वैसे ही फूल भी
धीरे धीरे खिल उठते।
प्रकृति का ये नियम
बड़ा रामणी होता है।।
फूलो की सुंदरता महक से
खिल उठा सारा गुल्स्थान।
तितली भवरे मड़राने लगे
खिलते हुए फूलो पर।
स्नेह प्यार का ये दृश्य
देखकर आँखे भर आई।
क्या हम मानव भी
ऐसा कुछ कर सकते।।
बागों की सुंदरता होती
उसके पेड़ों और फूलो से।
प्रकृति भी इसमें निभाती
अपनी निश्चित ही भूमिका।
तभी तो मानव को भी
मिलता इसका सुख।
ये सब दिया हमें है
उस श्रष्टी निर्माता ने।।
प्यार मोहब्बत होती है
अक्सर ही बागों में ।
प्रेमी और प्रेमिका आदिजन
मिलते जुलते है बागो में।
इसमें प्रकृति भी अपनी
भूमिका बहुत निभाती है।
और लोगों के दिलों में
मोहब्बत के दीप जलाते है।।