गुजर गए इतने दिन,
तो बाकी भी निकल जाएंगे।
घर में रहना क्या होता,
समझ में आ गया होगा।
कैसे दिनभर घर में कोई,
अकेला रह सकता है।
यही काम तो तुम्हारी,
धर्मपत्नी अकेले करती है।
और घर के काम काज,
अकेली दिन भर करती।
न कोई वेतन न कोई छुट्टी,
उससे तुमसे मिलती है।
और चक्की की तरह,
सदा ही पिसती रहती है।
फिर भी उफ तक वो,
कभी भी नहीं करती।।
और एक तुम हो जो,
अपने कामो का ढ़िडोरा पीटते हो।
उसी की आड़ में तुम,
क्या नही कहते पत्नी से।
और अपने को बहुत बड़ा,
शूरवीर समझते हो।
जबकि हकीकत कुछ और ही,
तुम्हारी व्या करती है।
बिना सपोर्ट के तुम,
कुछ कर नही पाते।
चाहे ऑफिस या घर,
अकेले चल नहीं पाते।
तभी तो आत्मबल के लिए,
तुम्हें धर्मपत्नी चाहिए।
जिसकी प्रार्थनाओं से,
तुम्हारी जिंदगी चलती है।
और सफलता की सीढ़ीयां,
निरंतर तुम चढ़ाते जाते हो।
और एक सफल पति
कहलाते हो।।

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