प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत की जन्मशती के अवसर पर आज दिनांक 10 नवंबर 2025 को उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी के हिंदी विभाग द्वारा ‘राजर्षि सेमिनार हाल’ में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी दो सत्रों में संपन्न हुई। संगोष्ठी के प्रथम सत्र का विषय “भारतीय समाज और अमरकांत” रहा।इस सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार श्री रणेन्द्र ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि अमरकांत कहीं भी बहुत लाउड नहीं होते, वे धीमी गति से संचालित होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि अमरकांत भारतीय मध्यवर्ग की विद्रूपताओं और अंतर्विरोधों को चित्रित करते हैं। अपने वक्तव्य में उन्होंने ‘नौकर’, ‘समर्थ’, ‘हिलता हाथ’, ‘हत्यारे’ जैसी कहानियों की चर्चा करते हुए कहा कि अमरकांत बेरोजगारी, स्त्री-जीवन तथा गरीबों के संघर्ष का सशक्त चित्रण करते हैं। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अमरकांत की कथा-भाषा का सौंदर्य मूलतः देह-भाषा का सौंदर्य है।
संगोष्ठी में बोलते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि अमरकांत के कथा-साहित्य का स्वर मूलतः पुरबिया स्वर है। वे मध्य भारत के खदबदाते सामाजिक यथार्थ के रचनाकार हैं। प्रो. शुक्ल ने आगे यह भी कहा कि अमरकांत के कथा-साहित्य में जनतांत्रिक मूल्यों की प्रतिबद्धता, भूख की सामाजिकता और नियति का नहीं निर्माण की चेतना है। उनके यहाँ भारतीय समाज का बदलते रूप स्पष्ट दिखाई देते हैं।
संगोष्ठी में बोलते हुए हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि अमरकांत की कहानियों में सौंदर्य का यथार्थ धीरे-धीरे प्रकट होता है, जो किसी एक केंद्र तक सीमित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अमरकांत ऐसे समाज के चितेरे हैं जो अपने गठन में पारंपरिक होते हुए भी अपनी नग्न सच्चाइयों के साथ उनकी कहानियों में उभरता है। संगोष्ठी के आरंभ में संगोष्ठी में आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. धर्मेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि अमरकांत प्रेमचंद की परंपरा के ऐसे रचनाकार थे जो जिज्ञासु यथार्थवादी थे। उन्होंने ‘डिप्टी कलेक्टरी’, ‘बहादुर’, ‘ज़िंदगी और जोंक’ जैसी कहानियों का उल्लेख करते हुए कहा कि अमरकांत की लेखनी लोगों को गहराई तक प्रभावित करती है। इस सत्र का संचालन प्रो. गोरखनाथ एवं प्रो. अनिता सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. मधु सिंह ने दिया।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र का विषय “प्रगतिशील आंदोलन और अमरकांत का कथालेखन” था।
इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक श्री वीरेन्द्र यादव ने किया। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि अमरकांत की रचना-निर्मिति समाजवादी और प्रगतिशील आंदोलन के आदर्शों से रची-बसी है। उनका संपूर्ण कथा-साहित्य स्वाधीनता आंदोलन के मूल्यों से प्रेरित है। समता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के आदर्श उनके लेखन में केंद्र में हैं। श्री वीरेन्द्र यादव ने आगे कहा कि ‘हत्यारे’, ‘दोपहर का भोजन’, ‘डिप्टी कलेक्टरी’ जैसी कहानियाँ उनके जनपक्षधर दृष्टिकोण की मिसाल हैं।
इस सत्र में बोलते हुए जनकवि श्री शिवकुमार ‘पराग’ ने कहा कि अमरकांत की कहानियों का फिल्मांकन उत्कृष्ट हो सकता है। उन्होंने कहा कि अमरकांत ने प्रेमचंद के बाद साहित्य और समाज दोनों क्षेत्रों में जनचेतना को जगाने का कार्य किया।

संगोष्ठी में बोलते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. आशीष त्रिपाठी ने कहा कि अमरकांत, प्रेमचंद और यशपाल की प्रगतिशील कथा-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले लेखक थे। उन्होंने नई कहानी के आधुनिकतावादी लेखकों के समानांतर प्रगतिशील दृष्टि को पुनर्परिभाषित किया और निम्नवर्गीय जीवन की जटिलताओं को गौरवान्वित किए बिना सजीव रूप में प्रस्तुत किया। प्रो. नीरज खरे ने कहा कि आज़ादी के बाद प्रेमचंद की कथा-परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में अमरकांत का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अमरकांत की प्रगतिशील दृष्टि फ़ार्मूलाबद्ध नहीं है। उन्होंने चलताऊ विचारधारा से हटकर सादगी और व्यंग्य की गहराई से अपने आसपास की ज़िंदगी पर लेखन किया। द्वितीय सत्र का संचालन डॉ. वंदना चौबे ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. गोरख नाथ ने किया।
आज की संगोष्ठी में जिन महानुभवों की विशेष उपस्थिति रही उनमें डॉ. सदानंद सिंह, डॉ. एम. पी. सिंह, प्रो. रमेशधर द्विवेदी, प्रो. प्रज्ञा पारमिता, प्रो. अंजू सिंह, डॉ. मीरा सिंह, प्रो. उपेंद्र कुमार, डॉ. चंद्रशेखर सिंह, डॉ. संजय श्रीवास्तव, प्रो. सुधीर कुमार शाही, प्रो. संतोष कुमार यादव, प्रो. अलका रानी गुप्ता, प्रो. पंकज कुमार सिंह, श्री अजय राय, डॉ. डी. डी. सिंह, प्रो. सुधीर कुमार राय, प्रो. रश्मि सिंह, प्रो. रेनू सिंह, डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. मयंक सिंह, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. संजीव सिंह, डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. आनंद राघव चौबे, डॉ. अनुराग उपाध्याय, डॉ. अक्षय कुमार, डॉ. सत्येंद्र सिंह, डॉ. देवेश चंद्र, डॉ. वंश गोपाल यादव, डॉ. बृजेश कुमार सिंह, डॉ. सतीश प्रताप सिंह, डॉ. नरेंद्र सिंह, श्री विकास यादव, डॉ. सत्यशरण मिश्रा, डॉ. शिवबचन , डॉ. विजय कुमार सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।

 

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