लोग न जाने क्यों मुझे
उल्लू सा समझते है।
और अपने आप को
बहुत चतुर और होशियार।
उनकी बातों का जवाब
सबके सामने नहीं देता।
ये मेरी कमजोरी नहीं है
बस रिश्तों का लिहाज है।
जिस दिन धैर्ये टूट जायेगा
उस दिन उनका क्या होगा।
शायद उन्हें इस बात का
अंदजा भी नहीं होगा।
मेरी सराफत और सहन
शीलता की परीक्षा न ले।
खुद भी शांति से जीये
और हमें भी जीने दे।
अकेला इंसान भी दुनियां में
सब कुछ कर सकता है।
किसी के सलाह और
मदद के बिना भी।
इसलिए हमें हमारे हाल पर
बुध्दिमान् महोदय छोड़ दे।
हम अपने अनुसार सब
कुछ कर लेंगे मान्यवर।
बहुत देख और सह चुका हूँ
अपने मानव जीवन में।
इसलिए अच्छे से अपने और
पराये को भी पहचानता हूँ।
जिनका कोई नहीं होता है
उनके भी कामधाम होते है।
बिना अपनों के भी
बहुत अच्छे से रहते है।
क्योंकि अपनों से ज्यादा
पाराये साथ देते है।
ये सब अपने जीवन में
बहुत बार मेहसूस किये है।
परिणाम पहले भी और
आज भी देख रहे है।
इसलिए अब न डर बचा है
और न सहनशीलता बची है।
इसलिए जीवन के पथ पर
अकेला चलने का मन कर लिया।
जिससे बचे हुये जीवन को शांति
और बिना परेशानियों से जी सकूँ।
इसलिए अपनी कृपा और दृष्टि
हम पर करना छोड़ दो।।
