प्रगति के लिए लोगों
परिवर्तन बहुत जरूरी है।
मूल आधार को छोड़कर
क्या ये संभव है।
क्या अपनी संस्कृति को
बचना हमें जरूरी है।
या परिवर्तन के लिए इसकी
आहुति भी दे सकते है।।
जो भी अपने आधार को
समय के लिए मिटता है।
चंद दिनों के बाद लोगों
उसका भी नाम मिट जाता है।
तब वो न यहाँ का रहता है
और न ही वहाँ का रहता है।
क्या यही परिवर्तन दोस्तों
सही में कहलाता है।।
जो अपनी संस्कृति को बेचकर
दुनियां की चकाचोंध में बहता है।
और इसे वो अपनी उपलब्धी
जमाने वालों को दिखता है।
परंतु खुद की पहचान को
हमेशा के लिए मिटा देता है।
क्या आप इसे सही में अपनी
या समाज की प्रगति कहते है।।