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भटकर एक राही
मेरे शहर आ पहुँचा।
लगा मुझको कुछ ऐसा
की खाई है बहुत ठोकर।
और जमाने वाले ने भी
इसे बहुत छला है।
तभी तो छोड़कर घरद्वार
हमारे शहर में आ गई।।

सफलता और असफलता की
कहानी स्वयं हम लिखते है।
और अपनी मोहब्बत को भी
स्वयं ही जिंदा रखते है।
और दिलकी धड़कनो को
स्वयं ही धड़काते है।
और अपने मन के अंदर
फूलो को खिलाते है।।

देखकर उस अजनबी को
मुझे कुछ होने सा लगा।
और दिलकी गैहराई से
एक आह सी निकल आई।
और लगा की कोई तो
हमारा उससे रिश्ता है।
जो हमें अपनी ओर
खींचे जा रहा है।।

हो सकता है की हमारा
पूर्व-जन्म का कोई संबंध हो।
जो इस जन्म में भी
हमसे मिलाना चाहता है।
इसलिए वो हमारे शहर में
मिलने आ गए है।
लगता है विधाता ने भी
अपनी सहमति दे दी है।।

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