तिनका तिनका छोड़कर
हमने बनाया आशियाना।
गूंजे की चिलकारिया
एक दिन बच्चों की।
घर आवाद हो जायेगा
जब ये सच होगा।
तब तक तो है प्रार्थना
यही प्रभुजी से।।
ताक लगाए बैठे रहते
यहां वहां काले कौऊआ।
कैसे मैं घूस पाऊ
अब इसे अंदर।
खाना लेने जाती
जब भी चिड़िया।
तब मौका मिल जाता
इन्हें घूसने का।।
यही हाल है आज हमारा
उलझे पड़े इसी चक्र में।
सब के सब अवसरवादी है
हो चाहे पशु-पक्षी या नर।
सभी की अपनी अपनी
लालचे आदि जो है।
नहीं समझ पाया है अब भी
प्रभु की लीला को मानव।।
आनादिकाल से चली
आ रही यही प्रथाएँ।
मिलता है इतिहास पुराने
ग्रंथो और पुराणों में।
खून वही वाह रहा है
आज भी इनकी नशो में।
तो कैसे बदलेगा ये जग
अपनी पुरानी आदतो से।।