इंसान ही इंसान को लाता है।
इंसान ही इंसान को सिखाता है।
इंसान ही इंसानियत समझता है।
इंसान ही इंसान को मिटाता है।।
देखो कही धूप कही छाव है
कही ख़ुशी कही गम है।
फिर भी इंसान ही क्यों
इस दुनियाँ में दुखी है।
जबकि उसे सब कुछ
विधाता से मिला है।
फिर भी अपने लिए क्यों
और की चाहत रखता है।।
देखो बिकता है आज कल
हर चीज बाजार में।
सबसे सस्ता मिलता है
इंसान का ईमान जो।
जिसे खरीदने वाला
होना चाहिए बाजार में।
और उसे कमजोर का भी
आभास होना चाहिए।।
देखो इंसान जिंदगी भर
पैसे के लिए भागता है।
जितने की उसे जरूरत हो
उसे ज्यादा की चाहत रखता है।
इसलिए तो अपनी जिंदगी में
कभी संतुष्ट नहीं हो पाता।
और पैसे की खातिर वो
खुदको भी बेच देता।।
देखो लोगों पैसे से जिंदगी
और दुनियाँ चलती है।
पर सब की किस्मत में
पैसा नहीं कुछ और होता है।
जिसके ज्ञान के कारण ही
कुछ लोग उद्योगपति बनते है।
जो देश दुनियाँ को फिर
अपनी उंगली पर नचाते है।।