poem shiv maha yogi

शिव प्रकट हुआ योगी सा बैठा पर्वत की शिखर पर
अनुचर समझें ज्योति ब्रह्म का, देखें समीप में उनकों जाकर

ध्यानस्थ योगी कहलाया शिव रुद्र समस्त जगत में
बना उद्धारक पीड़ित जन का, अपनें अनुचर के संगत में

शिव प्रेमी हैं जगत का पहला कुरीतियों का प्रहार है
ज़िसके वियोग से जगत ये दहला शत्रुओं का संहार है

शिव विविध रूप में फैला जग के कोने कोने में
प्रकट हैं काशी कौशल में, तो छुपा हैं मक्का मदीने में

मैं भी शिव हूँ तू भी शिव हैं, जगत सभी हैं शिव का अंश
घुल जा शिव में अभी तू बंदे, मिटेगा तेरे मन का भ्रंश

शिव सुबह हो शाम रात भी, शिव दिनचर्या शिव पुनश्चर्या
लगा रहे शिव में हरदम , करके ध्यान भजन और चर्चा

शिव सहारा जगत का सारा, शिव जगत का आधार है
शिव सागर हैं शिव किनारा, शिव जीवन का सार है

ध्यान धरो शिव का गर हमेशा, विचलित ना होगा पथ से
भय भ्रष्ट मद लोभ मिटेगा, बचा रहेगा सबके हट के ।।

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